श्री राम यज्ञ - (46वीं समिधा) - जसवीर सिंह हलधर

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जय जय जय आलेख भवानी ।

चली अंत की ओर कहानी ।।

रावण सोच सोच पछताया ।

अहिरावण भी काम न आया ।।1

रावण करता अब तैयारी ।

बाकी कौन बचा हितकारी ।।

जीवन या मृत्यु वरण होगा ।

जीवन का अंत चरण होगा ।।2

रथ में अब घोड़े जोड़ दिए ।

रण भू को घोड़े मोड़ दिए ।।

सारे घातक हथियार रखे ।

तूणीर धनुष तलवार रखे ।।3

नियती ने खूब छला रावण ।

रण भू की ओर चला रावण ।।

खुद बीज नाश का बो बैठा ।

सारे कुनबे को खो बैठा ।।4

जिसने देवों को जीता है ।

जो आग आब सम पीता है ।।

अपने पुरखों का ध्यान किया ।

रण चंडी का आह्वान किया ।।5

लड़ने आया रावण खल है।

वानर सेना में हलचल है ।।

अब एक ओर वानर दल है ।

दूजी में द्राविड़ खल बल है ।।6

अब प्रश्न राम की ओर खड़ा।

रावण रथ पर पुरजोर खड़ा ।।

मुद्दा देवों में गरमाया ।

रावण रथ पर लड़ने आया ।।7

नारायण युद्ध करें कैसे ।

रावण के प्राण हरें कैसे ।।

प्रस्ताव इंद्र को भिजवाया ।

रथ देव लोक का तब आया ।।8

हैं श्वेत वर्ण के सब घोड़े ।

नायाब किस्म सब जोड़े ।।

हरि का निर्देश समझते हैं ।

हरि का आदेश समझते हैं ।।9

रथ एक दूसरे के सम्मुख ।

पथ एक दूसरे के सम्मुख ।।

दोनों ही बड़े खिलाड़ी हैं ।

दोनों ही खड़े अगाड़ी हैं ।।10

- जसवीर सिंह हलधर, देहरादून