श्री राम यज्ञ - (45वीं समिधा) -  जसवीर सिंह हलधर

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बजरंगी के साथ भवानी ।

आगे की है कथा सुहानी ।।

मकरध्वज हनुमत से बोला।

अपने मन का ताला खोला ।।1

अब तात हुआ पूरा सपना ।

अब धर्म निभाऊँगा अपना ।।

अहिरावण को मरना होगा ।

अपराध दंड भरना होगा ।।2

एक गुप्त विधिबत लाऊँगा ।

अहिरावण वध समझाऊँगा ।।

दीपक जो पांच दिशाओं में ।

जलते हैं चंद्र कलाओं में ।।3

यदि एक साथ बुझ जाएंगे ।

तब नारायण छुट पाएंगे ।।

वो शक्ति हीन हो जाएगा ।

सिद्धी विहीन हो जाएगा ।।4

विस्तृत आकार करो अपना ।

मुख का विस्तार करो अपना ।।

पंचानन रूप धरे हनुमत ।

पचकोण स्वरूप करे हनुमत ।।5

दिश पांचो दीप बुझा डाले ।

संकट मोचक खोले ताले ।।

अहिरावण का वध कर डाला ।

जय महावीर अंजनि लाला ।।6

वो त्राता के भी त्राता हैं ।

कंधे पर दोनों भ्राता है ।।

रखवाले के रखवाले हैं ।

बजरंगी बहुत निराले हैं ।।7

राघव से कैसा नाता है ।

बजरंगी सदा बचाता है ।।

महावीर बलशाली जंगी ।

नारायण के सच्चे संगी ।।8

दोनों भ्रात शिविर में आये।

देख विभीषण यह हर्षाये ।।

जामवंत ने करी बढ़ाई ।

जय बजरंगी वीर गुसांई ।।9

विजयी भाव अहसास बढ़ा अब ।

सेना में विस्वास बढ़ा अब ।।

संदेशा रावण तक आया ।

अहिरावण ने छोड़ी काया ।।10

- जसवीर सिंह हलधर, देहरादून