श्री राम यज्ञ - (45वीं समिधा) - जसवीर सिंह हलधर
Updated: Sep 28, 2021, 10:58 IST
| बजरंगी के साथ भवानी ।
आगे की है कथा सुहानी ।।
मकरध्वज हनुमत से बोला।
अपने मन का ताला खोला ।।1
अब तात हुआ पूरा सपना ।
अब धर्म निभाऊँगा अपना ।।
अहिरावण को मरना होगा ।
अपराध दंड भरना होगा ।।2
एक गुप्त विधिबत लाऊँगा ।
अहिरावण वध समझाऊँगा ।।
दीपक जो पांच दिशाओं में ।
जलते हैं चंद्र कलाओं में ।।3
यदि एक साथ बुझ जाएंगे ।
तब नारायण छुट पाएंगे ।।
वो शक्ति हीन हो जाएगा ।
सिद्धी विहीन हो जाएगा ।।4
विस्तृत आकार करो अपना ।
मुख का विस्तार करो अपना ।।
पंचानन रूप धरे हनुमत ।
पचकोण स्वरूप करे हनुमत ।।5
दिश पांचो दीप बुझा डाले ।
संकट मोचक खोले ताले ।।
अहिरावण का वध कर डाला ।
जय महावीर अंजनि लाला ।।6
वो त्राता के भी त्राता हैं ।
कंधे पर दोनों भ्राता है ।।
रखवाले के रखवाले हैं ।
बजरंगी बहुत निराले हैं ।।7
राघव से कैसा नाता है ।
बजरंगी सदा बचाता है ।।
महावीर बलशाली जंगी ।
नारायण के सच्चे संगी ।।8
दोनों भ्रात शिविर में आये।
देख विभीषण यह हर्षाये ।।
जामवंत ने करी बढ़ाई ।
जय बजरंगी वीर गुसांई ।।9
विजयी भाव अहसास बढ़ा अब ।
सेना में विस्वास बढ़ा अब ।।
संदेशा रावण तक आया ।
अहिरावण ने छोड़ी काया ।।10
- जसवीर सिंह हलधर, देहरादून