श्री राम यज्ञ - (39वीं समिधा) - जसवीर सिंह हलधर
जय जय जय क्षर क्षर की देवी ।
शब्द पुष्प अक्षर की देवी ।।
राम कथा में शोक समाया ।
संशय में आलोक समाया ।।1
बूटी लेने गये गुसांई ।
प्रतीक्षा में हैं रघुराई ।।
फिर षड्यंत्र सामने पाया ।
कालनेमि रस्ते में आया ।।2
राम भक्ति का भेष बनाकर ।
रावण के कुनबे का चाकर ।।
हनुमत को भरमाना चाहे ।
व्रत खंडित करवाना चाहे ।।3
खल कुनबे का खेल पुराना ।
हनुमत ने उसको पहचाना ।।
कालनेमि का वध कर डाला ।
जय जय मात अंजनी लाला ।।4
पार किये पथ ऊँचे नीचे ।
भूधर की चोटी पर पहुँचे ।।
घूम घूम कर बूटी खोजें ।
सूँघ सूँघ कर बूटी खोजें ।।5
सभी एक सी पड़ें दिखायी ।
पवनपूत के समझ न आयी ।।
बात हिमालय को बतलाई ।
संकट में रघुवर के भाई ।।6
भूधर सिमट हाथ में आया ।
ऐसी नारायण की माया ।।
हनुमत उड़े हाथ पर भूधर ।
वीर भरत ने देखा ऊपर ।।7
सोचे राक्षस है यह पगला ।
कर देगा नगरी पर हमला ।।
राम अनुज ने धनुष उठाया ।
सावधान कर बाण चलाया ।।8
तीर लगा हनुमत को जाकर ।
घायल नारायण का चाकर ।।
दिया भरत को अपना परिचय ।
बतलाया अपना दृढ़ निश्चय ।।9
यह गंभीर सूचना पाकर ।
रोये भरत बहुत घबराकर ।।
क्षमादान मांगा हनुमत से ।
पवन पूत वानर दलपत से ।।10
जसवीर सिंह हलधर , देहरादून