श्री राम यज्ञ- (34वीं समिधा) - जसवीर सिंह हलधर
हे शब्द शक्ति दे दो माता ।
निर्वाध भक्ति दे दो माता ।।
अपनी मुझको सहमति दे दो ।
लिखने की ये अनुमति दे दो ।।1
अब दृश्य भयानक है रण में ।
मरते हैं योद्धा क्षण-क्षण में ।।
जब कुंभ करण का अंत हुआ ।
साक्षी आकाश अनंत हुआ ।।2
रावण की गोदी में मुख है ।
सारे कुनबे में ही दु:ख है ।।
महिलायें पीट रहीं छाती ।
रो-रो कर शोक गीत गातीं ।।3
रावण की सेना व्याकुल है ।
पूरी लंका शोकाकुल है ।।
रावण की आंखों में लाली ।
यह देख रही चंडी काली ।।4
हो गया कुंभ का भी मर्दन ।
आंगन में रखी हुई गर्दन ।।
अब छाती पीट रहा रावण ।
क्यों हार गया तू कुंभकरण ।।5
जल थल नभ तीनों लोकों में।
धरती आकाश झरोखों में ।।
ऐसा वह कौन पुरोधा है ।
जो तुझसे बेहतर योद्धा है ।।6
कुछ कड़े प्रश्न करता रावण ।
कुछ बड़े प्रश्न करता रावण ।।
उत्तर देता सब कुंभ करण ।
लड़ने आये खुद नारायण ।।7
लेकिन में हार नहीं माना ।
हरि ने भी अग्नि बाण ताना ।।
पी गया आग के बाणों को ।
जी गया युद्ध में प्राणों को ।।8
कोशिश बेकार गयी भाई।
आखिर मैं हार गया भाई।।
मैं परली पार गया भाई ।
उरली को वार गया भाई ।।9
मैं नहीं मरा नर के हाथों ।
मैं मुक्त हुआ हरि के हाथों ।।
अनुरक्ति राम जी की पायी ।
अब भक्ति राम जी की पायी ।।10
- जसवीर सिंह हलधर, देहरादून