श्री राम यज्ञ - (32वीं समिधा) - जसवीर सिंह हलधर

 | 
pic

हे मात शारदा दृष्टि धरो ।

मीठे छंदों से सृष्टि भरो ।।

रस रौद्र यहाँ मजबूरी है ।

रावण से युद्ध जरूरी है ।।1

आगे की कथा सुनाता हूँ ।

अब कुंभकरण को लाता हूँ ।।

बोला रावण से कुंभकरण ।

आया अब मेरा अंत चरण ।।2

लो भैया लड़ने जाता हूँ ।

अंतिम संदेश सुनाता हूँ ।।

होगा ये युद्ध महाभीषण ।

बेसक सम्मुख हो नारायण ।।3

बरसेगी आग महारण में ।

मरूँगा वानर क्षण क्षण में ।।

पूरा कौशल दिखलाऊँगा ।

पीछे नहीं पीठ दिखाऊँगा ।।4

उठ आया आधी निंद्रा से ।

ले रहा जवाई तंद्रा से ।।

कुलदेवी का आह्वान किया ।

रण प्रांगण को प्रस्थान किया ।।5

अब कुंभकरण लड़ने आया ।

बलशाली है उसकी काया ।।

दांतों से तीर खींचता है ।

मुट्ठी में वीर भींचता है ।।6

वानर कुल वीर लड़े भारी ।

खल सम्मुख वीर अड़े भारी ।।

सुग्रीव सामने खड़े हुए ।

वानर घायल हो पड़े हुए ।।7

यह देख-देख वानर भागे ।

कमजोर पड़े उसके आगे ।।

सुग्रीव कुंभ ने खींच लिए ।

कौली में अपनी भींच लिए ।।8

लेकिन वानर कुल योद्धा ने ।

किष्किन्धा सैन्य पुरोधा ने ।।

सब दाव कुंभ के छांट दिए ।

अब कान कुंभ के काट दिए ।।9

कमजोर पड़े खल के आगे ।

यह दृश्य देख हनुमत भागे ।।

अब महावीर सम्मुख आये ।

वो कुंभकरण से टकराये ।।10

 - जसवीर सिंह हलधर , देहरादून