श्री राम यज्ञ - (31वीं समिधा) - जसवीर सिंह हलधर 

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शब्द पुष्प कमला को अर्पित ।

छंद गुच्छ विमला को अर्पित ।।

मोड़ कथा में आया रोचक ।

बाल्मीकि हैं प्रथम विवेचक ।।1

रावण युद्ध छोड़कर भागा ।

बिना मुकुट के दिखे अभागा ।।

छुप-छुप कर भागा नगरी को ।

भांप गया हरि की गगरी को ।।2

अगला युद्ध चरण अब आया ।

कुंभकरण को तुरत जगाया ।।

कुंभकरण निंद्रा से जागा ।

रावण सम्मुख खड़ा अभागा ।।3

पूछा प्रश्न बिना कुछ देरी ।

निंद्रा क्यों खंडित की मेरी ।।

रावण ने कारण बतलाया ।

पूरा घटनाक्रम समझाया ।।4

कुंभकरण रावण से बोला ।

भाई तू कितना है भोला ।।

क्यों सीता का किया अपहरण ।

उसके कंत स्वयं नारायण ।।5

नारि नहीं सीता साधारण ।

कुंभकरण समझाता कारण ।।

जिसको समझा तू वनवासी ।

अजर अमर है वो अविनासी ।।6

अब भी वापस कर दो सीता ।

धरती की यह सुता पुनीता ।।

वंश हमारा बच जाएगा ।

अंश हमारा बच जाएगा ।।7

समय शेष है जल्दी जाओ ।

सीता को वापस पहुँचाओ ।।

भाई को चाहा समझाना ।

रावण नहीं सत्य पहचाना ।।8

जब-जब नाश मनुज पर आता ।

ज्ञान विवेक सभी मर जाता  ।।

बोला रावण से कुंभकरण ।

क्यों किया मौत का स्वयं वरण ।।9

रावण ने बात नहीं मानी ।

अपनी औकात न पहचानी ।।

उल्टा धमकाया कुंभकरण ।

कायर बतलाया कुंभकरण ।।10

- जसवीर सिंह हलधर, देहरादून