श्री राम यज्ञ - (30वीं समिधा) - जसवीर सिंह हलधर

 | 
pic

वह शक्ति मुझे दे दो माता ।

अनुरक्ति मुझे दे दो माता ।।

अब रौद्र कथानक होना है।

अब युद्ध भयानक होना है ।।1

शिव शक्ति प्रवाहित दोनों में ।

शिव भक्ति समाहित दोनों में ।।

दोनों पे दैविक शस्त्र बहुत ।

दोनो पे दैहिक अस्त्र बहुत ।।2

मायावी लड़ता माया से ।

भृमित करता है छाया से ।।

बौछार हो रही वाणों की ।

रावण को चिंता प्राणों की ।।3

कौदण्ड राम टंकार रहा ।

रावण दंभी हुंकार रहा ।।

रावण रथ पर लड़ने आया ।

नारायण को पैदल पाया ।।4

अब राम बाण घातक छोड़े ।

कट गयी ध्वजा घायल घोड़े ।।

लंकेश पसीने छूट गये ।

रथ के पहिये भी टूट गये ।।5

हरि ज्यों ज्यों प्रत्यंचा खीचें ।

रावण सैनिक ऑंखें मींचें ।।

तीरों से तीर निकलते हैं ।

वीरों को तीर निगलते हैं ।।6

वाणों की गति में स्पंदन ।

सागर की लहरों में कंपन ।।

अब जान गया दंभी रावण ।

नर रूप धरे हैं नारायण ।।7

करते हैं घातक वार बड़े ।

दोनों पे हैं हथियार बड़े ।।

पहला मुखिया कुनबे खल का ।

दूजा मालिक नभ जल थल का ।।8

अब वाण राम ऐसा छोड़ा ।

दशकंदर को पीछे मोड़ा ।।

रावण के प्राणों पर संकट ।

घिर गये हाथ गिर गया मुकुट ।।9

लेकिन हरि ने जीवित छोड़ा ।

अपना रुख पीछे को मोड़ा ।।

हरिहर से उलझ गया रावण ।

अब इतना समझ गया रावण ।।10

 - जसवीर सिंह हलधर, देहरादून