श्री राम यज्ञ- (26वीं समिधा) - जसवीर सिंह हलधर
युद्ध कथा लिखवा दे कमला ।
शब्दों की रखवाली विमला ।।
मैं तो एक अनाड़ी पगला ।
हंस बना या तोता बगुला ।।1
समर भूमि का दृश्य दिखाऊँ ।
योद्धाओं के कृत्य सुनाऊँ ।।
ज्यों ज्यों बाण चलें लक्ष्मण के ।
त्यों त्यों प्राण हरें खल गण के ।।2
सर सर सर की आंधी आई ।
खल प्रहस्त ने जान गंवाई ।।
छूटें बाण उठे चिंगारी ।
युद्ध भूमि में मारामारी ।।3
खर का पूत सामने आया ।
नाम सुनो मकराक्ष बताया ।।
सम्मुख आये लक्ष्मण अंगद ।
हनुमत भांप रहे उसका कद ।।4
बोला तुमसे नहीं लड़ूँगा ।
नीति अवज्ञा नहीं करूँगा ।।
सेना नायक कहाँ तुम्हारा ।
खर दूषण का जो हत्यारा ।।5
उससे युद्ध कराओ मेरा ।
बोलो कहाँ राम का डेरा ।।
लेना है प्रतिशोध पुराना ।
खर दूषण का कर्ज चुकाना ।।6
माँ ने ना सिंगार उतारा ।
पहने बैठी है लश्कारा ।।
शीश राम का अर्पण होगा ।
तभी तात का तर्पण होगा ।।7
राक्षस कुल को लगी पनौती ।
राघव की स्वीकार चुनौती ।।
युद्ध हुआ दोनो में जारी ।
निकली बाणों से चिंगारी ।।8
भीषण युद्ध हुआ दोनों में ।
चर्चा लंका के कोनों में ।।
खर का पूत भतीजा दूषण ।
खल कुनबे का है आभूषण ।।9
युक्ति विभीषण ने बतलाई ।
शक्ति राम जी से चलवाई ।।
मौत राम के हाथों पायी।
स्वर्ग गया रावण अनुयायी ।।10
- जसवीर सिंह हलधर, देहरादून