श्री राम यज्ञ - (22वीं समिधा) - जसवीर सिंह हलधर 

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आशीष मुझे दे दो मइया

लिखवा दो ऐसी चौपइया ।।

घर घर में कथा सुनी जाए

नर नारि सभी के मन भाए ।।1

कर एक लिंग का अस्थापन

प्रारम्भ सैन्य दल प्रस्थापन ।।

राघव ने पुनः मंत्रणा की

रावण ने बहुत यंत्रणा दी ।।2

खल रावण को समझाने को

भीषण विध्वंश बचाने को ।।

प्रस्ताव शांति का भिजवाया

नारायण की देखो माया ।।3

समझौते का न्योता भेजा

अंगद को इकलौता भेजा ।।

अंतर जाना शक शंका में

दहसत थी सारी लंका में ।।4

पहुँच गये लंका में अंगद

लगी हुई रावण की संशद ।।

पूरा परिवेश बता डाला

हरि का संदेश सुना डाला ।।5

अब भी समय सँभल जा रावण

वंश बचा ले अपना द्रावड ।।

हम दोनों के इस रगड़े में

लाखों मर जायें झगड़े में ।।6

अंगद ने संदेश सुनाया

रावण ने उपहास उड़ाया ।।

अट्ठहास कर शोर मचाया

कायर का संदेशा आया ।।7

उल्टा अंगद से यह बोला

बालि पूत क्यों इतना भोला ।।

बाप बालि को जिसने मारा

उसका क्यों बोले जयकारा ।।8

अंगद दिया प्रश्न का उत्तर

अभिमानी हो गया निरुत्तर ।।

सच्चा वानर कुल अंशज हूँ

 वीर बालि का मैं वंशज हूँ।।9

राम हमारे हैं बलशाली

दुर्गति तेरी होने वाली ।।

अहंकार तेरा है जाली

लंका है वीरों से खाली ।।10

-जसवीर सिंह हलधर, देहरादून