श्री राम यज्ञ - (21वीं समिधा) - जसवीर सिंह हलधर
मात शारदा शिक्षा देना ।
शब्दकोष की भिक्षा देना ।।
गुरुवर मुझको दीक्षा देना ।
कैसा लिखा समीक्षा देना ।।1
पूरा हुआ सेतु का बंधन।
नल औ नील सुघड़ प्रबंधन ।।
शिवलिंग का करके स्थापन ।
हर्षित दिखे आज रघुनंदन ।।2
मिलने आये आज विभीषण ।
विष्णु भक्त होने के कारण ।।
द्वेष भाव रखता था रावण ।
कहता उसको हरि का चारण ।।2
कारण बता विभीषण रोया ।
मैंने अपना सब कुछ खोया ।।
राम आपके साथ रहूँगा ।
जो चाहोगे वही करूँगा ।।3
लक्ष्मण को थोड़ी आशंका ।
शत्रु दूत होने की शंका ।।
बजरंगी ने किया निवारण ।
सही-सही बतलाया कारण ।।4
लेकर महावीर अनुमोदन ।
किया तुरत स्वीकार निवेदन ।।
शत्रु भ्रात को गले लगाया ।
ऐसी नारायण की माया ।।5
कारण पूछा निर्वासन का ।
क्या झगड़ा है सिंघासन का ।।
कारण झगड़े का बतलाया ।
राज विभीषण ने समझाया ।।6
मैंने किया प्रश्न रावण से ।
सीता क्यों हर लाये वन से ।।
धरती सीता की माता है ।
सीधा हरिहर से नाता है ।।7
पश्चयाताप करो निर्णय पर ।
करो विचार भ्रात अनुनय पर ।।
सीता रघुवर को लौटाओ ।
द्रविड़ कुल का नाश बचाओ ।।8
मेरी बात एक ना माना ।
ये आदेश दिया मनमाना ।।
लात मारकर मुझे निकाला ।
अहंकार में वो मतवाला ।।9
नाश मनुज पर जब छाता है ।
बुद्धि ज्ञान तब मर जाता है ।।
मित्र विभीषण तुरत बनाया ।
राम शरण में सेवक आया ।।10
- जसवीर सिंह हलधर, देहरादून