श्री राम यज्ञ - (20वीं समिधा) - जसवीर सिंह हलधर 

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सरस्वती माता का वंदन ।
गुरुओं का होवे अभिनंदन  ।।
जो वो चाहें लिखता जाऊँ ।
जैसा चाहें दिखता जाऊँ ।।1

सिंधु किनारे हैं रघुनंदन ।
सेतु समस्या पर है मंथन ।।
जो प्रस्ताव सिंधु का आया ।
राघव के भी मन को भाया ।।2

नल औ नील तुरत बुलवाये ।
जामवंत हनुमत भी आये ।।
सागर का प्रस्ताव बताया ।
वक्त सेतु बाधन का आया।।3

दो दो पूत विश्वकर्मा के ।
साथ खड़े हैं युग धर्मा के ।।
हैं निर्माण कला पारंगत ।
जामवंत हनुमत की संगत ।।4

किया राम ने भू का पूजन ।
सागर ऊपर सेतु नियोजन ।।
सिंधु सुझाव सभी को भाया ।
वानर सेना को समझाया ।।5

लाखों वानर पत्थर लावें ।
नल औ नील शिला तैरावें ।।
राम नाम से शोभित पत्थर ।
तैर गये सागर के ऊपर ।।6

देख-देख रघु पति हर्षाये ।
एक शिला खुद भी ले आये ।।
राम नाम लिखकर तैराया ।
सागर उसको रोक न पाया ।।7

देख रहे यह घटना हनुमत ।
संशय में आये हैं रघुपति ।।
संशय उनका दूर कराया ।
हनुमत ने कारण बतलाया ।।8

राम हाथ से छूटा पत्थर ।
रोक नहीं पायेगा सागर ।।
ऐसी राम नाम की माया ।
पांच दिवस में सेतु बनाया ।।9

दस योजन जिसकी चौड़ाई ।
सौ योजन की है लंबाई ।।
धनुषकोडि में भू की पूजा ।
मन्नर दीप छोर है दूजा ।।10
जसवीर सिंह हलधर , देहरादून