श्री राम यज्ञ - (19वीं समिधा) - जसवीर सिंह हलधर
मात शारदा की है माया ।
ऐसा सुंदर विषय थमाया ।।
जितनी बार पढ़ो मन भावे ।
पुनः गढ़ो तो नव रस आवे ।।1
सेना का आह्वान हुआ है ।
दक्षिण को प्रस्थान हुआ है ।।
धनुषकोडि में फेरा डाला ।
सिंधु किनारे डेरा डाला ।।2
रस्ता खोज रहे रघुलाला ।
सिंधु खड़ा आगे मतवाला ।।
कैसे पार लंक तक जावें ।
कठिन समस्या पार न पावें ।।3
राह खोजने सिंधु बुलाया ।
सागर अहंकार में पाया ।।
किये बहुत प्रयास सुलह के ।
मंतर बहुत पढ़े अनुनय के ।।3
तीन दिवस तक सिंधु न आया ।
क्रोध राम के मन में छाया ।।
प्रीत न होती है बिन भय के ।
काम न आये मंत्र विनय के ।।4
हरि ने अब कौदण्ड उठाया ।
प्रत्यंचा पर वाण चढ़ाया ।।
बोले शस्त्र अनौखा छोडूँ ।
पानी की हर बूँद नीचौडूँ ।।5
ब्रह्मा जी का अस्त्र चलाऊँ ।
तुखको को सूखा ग्रस्त बनाऊँ ।।
जब यह वचन रामजी बोले ।
धरती अम्बर दोनो डोले ।।6
देवों ने उसको समझाया ।
सिंधु तुरत चरणों में आया ।।
हरि से मांगी क्षमा याचना ।
समाधान की करी अर्चना ।।7
भय बिन प्रीत न होती भाई ।
सोच रहे मन में रघुराई ।।
सागर ने अब युक्ति बताई ।
सेतू बंधन सुक्ति सुझाई ।।8
नल और नील सगे दो भाई ।
थे बचपन में आताताई ।।
आदत बुरी नील औ नल में ।
ऋषि सामिग्री फेंकते जल में ।।9
श्राप दिया ऋषियों ने मिलकर ।
फैंका सब तैरेगा जल पर ।।
लोह धातु हो या हो पत्थर ।
श्राप लगा दोनो के सर पर ।।10
- जसवीर सिंह हलधर , देहरादून (उत्तराखंड)