श्री राम यज्ञ - (17वीं समिधा) - जसवीर सिंह हलधर

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कृपा हो जब नारायण की ।

पार भ्रह्म की पारायण की ।।

औगड को विद्द्वान बना दे ।

रामायण सा ग्रंथ लिखा दे ।।1

लंका पहुँच गए बजरंगी ।

मिले विभीषण उनको संगी ।।

पता अशोक वाटिका दीना ।

समाधान शंका का कीना ।।2

किया वाटिका का अवलोकन ।

वहां हुए माता के दर्शन ।।

परिचय हनुमत ने बतलाया ।

माता को विश्वास न आया ।।3

माता संसय में सकुचाई ।

दिखती थोड़ी सी घबराई ।।

राम मुद्रिका कपिस दिखाई ।

मैं हनुमत पहचानो माई ।।4

राघव का निर्णय बतलाया ।

अपना दृढ़ निश्चय बतलाया ।।

कुछ दिन और शेष हैं माता ।

आने वाले दोनों भ्राता ।।5

किष्किन्धा में सेना सारी ।

पूरी लड़ने की तैयारी ।।

सेना है तैयार हमारी ।

नहीं बचेगा अत्याचारी ।।6

तोड़ वाटिका के फल खाये ।

रक्षक सारे मार भगाये ।।

मिली सूचना रावण खर को।

लाओ तुरत पकड़ वानर को ।।7

हनुमत ने करतब दिखलाये ।

सारे सैनिक मार भगाये ।।

रावण पूत युद्ध को आया ।

जो हनुमत ने मार गिराया ।।8

दिए शक्ति का हनुमत परिचय ।

मारा गया युद्ध में अक्षय ।।

आया मेघनाद तब लड़ने ।

पवन पुत्र के सम्मुख अड़ने ।।9

युद्ध हुआ दोनो बलियों में ।

चर्चा लंका की गलियों में ।।

मेघनाद इतना घबराया ।

भ्रह्माजी का अस्त्र चलाया ।।10

- जसवीर सिंह हलधर, देहरादून (उत्तराखंड)