श्री राम कथा - ( नौवीं समिधा ) - जसवीर सिंह हलधर

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हंस वाहिनी कृपा कर दे ।

शब्द छंद से झोली भर दे ।।

आगे की अब राह दिखा दे ।

राम कथा के सत्य सिखा दे ।।1

तेरह वर्ष कटे यूँ वन में ।

ऋषि सेवा औ दुष्ट दमन में ।।

साल आखिरी ज्यों ही आया ।

विधिना ने फिर खेल रचाया ।।2

अंतिम वर्ष दंडकारण्य में ।

सूर्पनखा आ धमकी वन में ।।

पुरुषोत्तम पर नजर टिकाई ।

राघव सुंदरता अति भाई ।।3

मुझसे व्याह करो रघुराई ।

सूर्पनखा ने चाह जताई ।।

राघव ने उसको समझाया ।

एकल पत्नी व्रत बतलाया ।।4

लेकिन उसने एक न मानी ।

राम लला पर थी दीवानी ।।

अपनी जिद पर अड़ी हुई थी ।

रघुकुल धुन में पड़ी हुई थी ।।5

जाकर लखन लाल से बोली ।

तू ही बन मेरा हमजोली ।।

रूप भयानक लगी दिखाने ।

सीता माँ को लगी डराने ।।6

समझाने पर बाज न आये ।

भिन्न भिन्न कौतुक दिखलाये ।।

सीता जी पर धावा बोला ।

लक्ष्मण लहू क्रोध से खौला ।।7

लक्ष्मण ने तलवार उठाई ।

नाक काट कर दूर भगाई ।।

लखन लाल के कृत्य निराले ।

कान काट धरती पर डाले ।।8

नकटी हुई नार मतवाली ।

भागी रोती दे दे गाली ।।

भाग रही रोती चिल्लाती ।

खर दूषण को भ्रात बताती ।।9

पहुँच गयी खर दूषण सम्मुख ।

गिना दिए अपने सारे दुख ।।

खर दूषण रावण के भाई ।

लंका खबर तुरत भिजवाई ।।10

- जसवीर सिंह हलधर , देहरादून