श्री राम कथा - (आठवीं समिधा) - जसवीर सिंह हलधर 

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दे आशीष शारदे मैया ।

दे चौपाई छंद सवैया ।।

भरत राम जैसे त्यागी हैं ।

रघुनंदन के अनुरागी हैं ।।1

चरण खड़ाऊँ लेकर आये ।

सन्यासी बन राज चलाये ।।

सिंघासन पर रखे खड़ाऊँ ।

राजमहल के पास न जाऊँ ।।2

राजा सदा राम को माना ।

त्याग भरत का जग ने जाना ।।

विस्मय पूर्ण भरत की गाथा ।

अध्यन कर चकराये माथा ।।3

चौदह वर्ष प्रतिज्ञा सींचे ।

सोये धरती दो गज नीचे ।।

लिया अनूठा व्रत प्रयोजन ।

गोबर छान अन्न का भोजन ।।4

शत्रुघन भी साथ निभाये ।

महल छोड़ कुटिया में आये ।।

धन्य धन्य रघुकुल के वंशज ।

धन्य धन्य दशरथ के अंशज ।।5

चित्रकूट का छोड़ा आश्रम ।

राम चले अब दक्षिण पश्चिम ।।

दंडकारण्य बनाया डेरा ।

ऋषियों के सँग सांझ सबेरा ।।6

दुष्ट राक्षस चुन-चुन मारे ।

जो थे ऋषियों के हत्यारे ।।

ज्ञान दान ऋषियों से पाया ।

लक्ष्मण को भी योग सिखाया ।।7

सुंदर सुघड़ आरण्यक माला ।

पंचवटी में डेरा डाला ।।

घास फूंस की कुटी बनायी ।

सरकंडों की बाड़ लगायी ।।8

गरुड़ राज को मित्र बनाया ।

कुटिया के ही पास बसाया ।।

राम लला सबके हितकारी ।

गरुड़ जटायु बने अधिकारी ।।9

लक्ष्मण खोज करें भोजन की।

कंद मूल रघुवर के मन की ।।

भोज पकावें सीता माई ।

भोग करें लक्ष्मण रघुराई।।10

- जसवीर सिंह हलधर, देहरादून