श्री राम कथा- (16वीं समिधा) - जसवीर सिंह हलधर

 | 
pic

विनती सुन लो माता विमला ।

छंद लिखुं तुम बोलो इमला ।।

कथा राम की लिखना चाहूँ ।

तुलसी जैसा दिखना चाहूँ ।।1

घायल हुआ पड़ा अवनी पर ।

पछताता अपनी करनी पर ।।

क्रोधित हुआ बहुत राघव पर ।

छुपकर वार किया क्यों रघुवर ।।2

हार चुका है मुझसे रावण ।

क्या तुम हो राक्षस के चारण ।।

रघुवर शंका किया निवारण ।

बतलाया हमले का कारण ।।3

पाप पुण्य के भेद बताए ।

उसके सारे दोष गिनाए ।।

घृणित काज बालि तू कीना ।

अनुज भार्या को क्यों छीना ।।4

उत्तर नहीं बालि दे पाया ।

कांप रही थी उसकी काया ।।

भोग वासना मुझ में जागी ।

क्षमा तुरत राघव से मांगी ।।5

मैं हूँ किष्किन्धा का दागी ।

सुप्त चेतना उसमें जागी ।।

अंगद को हरि हाथ थमाया ।

मोक्ष राम के हाथों पाया ।।6

रघुनंदन रखना निगरानी ।

तारा बनी रहे पटरानी ।।

राजा सुग्रीव अनुज बनाओ ।

अंगद को युवराज बनाओ ।।7

चार मास का समय बिताया ।

वानर सेना युद्ध सिखाया ।।

जामवंत हैं सेना नायक ।

बजरंगी हैं उनके सहायक ।।8

खोज सिया की कर दी जारी ।

आगे राम कथा है न्यारी ।।

चारो दिशा गुप्तचर भागे ।

रात दिनों तक सारे जागे ।।9

राघव देख रहे क्षण क्षण को ।

हनुमत वीर गए दक्षिण को ।।

लंका पहुँचे वीर गुसांईं ।

सीता वहीं अपहृत पाईं ।।10

- जसवीर सिंह हलधर, देहरादून  (उत्तराखंड)