श्री राम कथा - (14वीं समिधा) - जसवीर सिंह हलधर
कमलासन पर बैठी मैया ।
मेरी पार लगाओ नइया ।।
शब्दाक्षर से भर दो झोली ।
छंदों में रस की रंगोली ।।1
श्रयम्बक भूधर पर जा पहुँचे ।
हरि खुद हरि के घर जा पहुँचे ।।
स्वागत किया बहुत हनुमत ने ।
पर्वत के वानर जनमत ने ।।2
जामवंत को दीना परिचय ।
राघव खान प्रेम की अक्षय ।।
हनुमत ने किस्सा समझाया ।
सारा घटनाक्रम बतलाया ।।3
सुग्रीव छुपा गुफा के अंदर ।
समझा राम बालि के सहचर ।।
संसय हनुमत दूर कराया ।
परिचय रघुवर से करवाया ।।4
विधिना ने क्या खेली कौड़ी ।
निर्वासित निष्कासित जोड़ी ।।
जामवंत ने रखी समस्या ।
बालि करी है धर्म अवज्ञा ।।5
भार्या अनुज भ्रात की छीनी ।
सजा राज निष्कासन दीनी ।।
वीर बालि है अति बलशाली ।
खुद का बाग उजाड़े माली ।।6
उठ सुग्रीव गले हरि लागा ।
समाधान का जुड़ता धागा ।।
साक्ष्य बना श्रयम्बक पर्वत ।
वक्त ले रहा अपनी करवट ।।7
मुझे बालि से मुक्ति दिला दो ।
रूमा भार्या युक्ति खिला दो ।।
मेरा सारा राज आपका ।
किष्किन्धा का ताज आपका ।।8
संधि तलक पहुँचा समझौता ।
दिया बालि को संगर न्योता ।।
साक्ष्य बने हनुमत बलवीरा ।
जामवंत से योद्ध समीरा ।।9
खोज सिया की होगी जारी ।
नहीं बचेगा अत्याचारी ।।
नर में नारायण परछायी ।
जामवंत हनुमत ने पायी ।।10
- जसवीर सिंह हलधर , देहरादून