शालिनी = शालिनी सिंह,
शालिनी, ना कवि, ना है शायर कोई।
वह तो प्रियतम की अपने है अनुरागिनी।।
भाव दिल में उठे, मचले तब लेखनी।
शब्द लिखें वही कविता बन गई।।
शालिनी-------
उनके ख्वाबों ख्यालों में खोये रहे।
जिंदगी ऐसे मेरी गुजरती रहे।।
कोई आये न तसव्वुर में मेरे कभी।
बस झलक मेरे प्रियवर की दिखती रहे।।
शालिनी----
शालिनी हूं मैं अन्तर में बृज है मेरे।
सार्थकता उन्हें पूजने में मेरी।।
गाती उनके मिलन का मैं गीत जो।
प्रीत उनमें ही मेरी छलकती रहे।।
शालिनी--------
शब्द में प्राण है भाव भगवान है।
भाव - शब्दों को प्रियतम पर वारूं सदा।।
बन कर मीरा मगन गाऊं जो भी मैं पद।
वह मेरे प्रियतम के प्रति मेरी सखी है श्रद्धा।।
शालिनी-------
शालिनी तो बस नि:प्राण एक देह है।
बिन प्रिय उसके जीवन में संदेह है।।
साधना उसकी प्रियतम का बस नाम है।
प्रिय के उसके अमर ही वरदान है।।
शालिनी------
बिन बृज के नहीं कोई हस्ती मेरी।
सांस भी है नहीं, जिंदगी भी नहीं।।
गीत अपने विरह की मैं गाती सदा।
तृप्ति उसमें ही जीवन की पाती सदा।।
शालिनी------
गीत कोई लिखूं उसमें एक साज है।
प्यार भी है मेरा,मेरा वैराग्य है।।
एक मूरत वहीं जो मुझे जीतती।
बाकी दुनियां का सब सुख बेकार है।।
शालिनी--------
देह ना मात्र मेरे प्रिय जान लो।
भाव मेरे हृदय के वह पहचान लो।।
चिर विरह में भी जलना पड़े जो मुझे।
वह ही शिव है मेरे ,मेरे भगवान है।।
शालिनी---------
= शालिनी सिंह, गोंडा, यूपी