संघर्ष - प्रदीप सहारे

 | 
pic

संघर्ष भी अजीब हैं,

गली कुचे से निकलकर।

टेढे मेढे रास्ते होकर

दौड़ता कभी,

खुली सड़क पर

परेशान होता कभी,

सड़क के खड्डें सा,

हांफता कभी ऊँची,

पहाडी पर चढ़ाई सा

लेकिन,

हारता नहीं ड़गर

पहुंचता मंजिल पर

चेहरे की झुर्रियों संग

घुटनो के दर्द से,

कराहते हुए, श्वास लेकर।

फिर थोड़ा,

मुस्कराता भी हैं,

नीचे का पायदान देखकर।

हँसता भी हैं,

ऊँचे मकाम पाकर

बस,

खत्म होती कभी,

संघर्ष की ड़गर

संग चलता,

आखरी सफर..

आखरी सफर....

- प्रदीप सहारे, नागपुर (महाराष्ट्र)