पढ़ना लिखना (कविता) = डा.अंजु लता सिंह

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बरसों पहले सुनते थे हम-

'काला अक्षर भैंस बराबर',

अनपढ़ होते दादा-दादी-

नाना नानी भी अक्सर.

फिर भी उनका ज्ञान अनोखा-

भूल नहीं सकते हैं हम,

ढेरों किस्से और कहानी-

मुख से सुनते थे हरदम.

आया नया जमाना फिर तो-

अंग्रेजी स्कूल खुले,

तख्ती, कलम, दवात हट गए-

पेन, डायरी घुले मिले.

ए बी सी डी खूब लिखी फिर-

शाही कलम दवातों से,

हिंदी भी हिंग्लिश बन बैठी-

लच्छे वाली बातों से.

मां बाबा भी माम डैड हो-

मुस्काते खीसें निपोरकर,

अंग्रेजी का भूत लिपटता-

दिखता हर नारी और नर पर.

सुंदर कलम लिये हाथों में-

फिरसे नव इतिहास रचें,

लेखन कला सुखद है सबसे-

आडंबर से सदा बचें.

= डा.अंजु लता सिंह 'प्रियम',नई दिल्ली