राम राम - स्वर्ण लता
Nov 10, 2021, 22:37 IST
| विदा हो चल दी निशा,
अंबर को कर कुसुमित।
ऊषा संग ले हो गये,
दिनकर स्वंय भी उदित।
मुरझाई कलियां भी,
फिर से हो गयी मुकुलित।
फूल बन सब खिल गई,
हवा हुयी तब सुरभित।
तू भी उठ मन मेरे,
अब हो के प्रफुल्लित।
हरि के चरणों में ही,
बस लगा अपना चित्त।।
- स्वर्णलता, दिल्ली