रक्षाबंधन - झरना माथुर

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utkarshexpress.com - श्रावण के महीने की पूर्णिमा के दिन मनाया जाने वाला यह त्‍यौहार भाई - बहन के प्‍यार का प्रतीक है। इस दिन बहन अपने भाइयों की कलाई में राखी बांधकर उनकी दीर्घायु, प्रसन्‍नता की मंगलकामना करती हैं। बदले में भाई, अपनी बहनों की हर प्रकार के अहित से रक्षा करने का वचन और उपहार भेट में देते हैं। यह सम्पूर्ण  भारत में मनाये जाने वाले त्योहारों में से एक महत्वपूर्ण त्‍यौहार है।

ऐसा भी कहा जाता हैं कि इस दिन ब्रा‍ह्मण अपने पवित्र जनेऊ बदलते हैं और एक बार पुन:धर्मग्रन्‍थों के अध्‍ययन के प्रति स्‍वयं को समर्पित करते हैं। राखी का पर्व कब और कैसे शुरु हुआ इसका कोई प्रमाणिक इतिहास  उपलब्ध नहीं है। असल में रक्षाबंधन की परंपरा ही उन बहनों ने डाली जिनके भाई नहीं थे। भले ही उन बहनों ने अपने संरक्षण के लिए ही इस पर्व की शुरुआत क्यों न की हो, लेकिन उसी बदौलत आज भी इस त्योहार की मान्यता बरकरार है।              

 इतिहास के पन्नों को देखें तो इस त्योहार की शुरुआत  लगभग 6 हजार साल पहले बताई गई है। इसके कई साक्ष्य भी इतिहास के पन्नों में दर्ज हैं।

वैदिक काल से जुड़े है रक्षा- बंधन के तार - राखी के बारे में भविष्य पुराण में वर्णन मिलता है कि देव और दानवों में जब युद्ध शुरू हुआ, तब दानव हावी होते नजर आने लगे। भगवान इंद्र घबराकर बृहस्पति के पास गए। वहां बैठी इन्द्र की पत्नी इंद्राणी सब सुन रही थी। उन्होंने रेशम का धागा मंत्रों की शक्ति से पवित्र करके अपने पति के हाथ पर बांध दिया। संयोग से वह श्रावण पूर्णिमा का दिन था।

राजा बलि से जुड़ी कथा -  स्कंध पुराण, पद्मपुराण और श्रीमद्भागवत में वामनावतार नामक कथा में रक्षाबंधन का प्रसंग मिलता है। दानवेंद्र राजा बलि का अहंकार चूर करने के लिए भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिया और ब्राह्मण के वेश में राजा बलि से भिक्षा मांगने पहुंच गए। भगवान ने बलि से भिक्षा में तीन पग भूमि की मांग की। भगवान ने तीन पग में सारा आकाश, पाताल और धरती नाप लिया और राजा बलि को रसातल में भेज दिया। बलि ने अपनी भक्ति के बल पर भगवान से रात-दिन अपने सामने रहने का वचन ले लिया। भगवान को वापस लाने के लिए नारद ने लक्ष्मी जी को एक उपाय बताया।लक्ष्मी जी ने राजा बलि को राखी बांध अपना भाई बनाया और पति को अपने साथ ले आईं। उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि थी।

महाभारत से जुड़े हैं तार- कृष्ण भगवान ने राजा शिशुपाल को मारा था। युद्ध के दौरान कृष्ण के बाएं हाथ की उंगली से खून बह रहा था। इसे देखकर द्रौपदी बेहद दु:खी हुईं और उन्होंने अपनी साड़ी का टुकड़ा चीरकर कृष्ण की उंगली में बांध दी, जिससे उनका खून बहना बंद हो गया। कहा जाता है तभी से कृष्ण ने द्रोपदी को अपनी बहन स्वीकार कर लिया था। सालों के बाद जब पांडव द्रोपदी को जुए में हार गए थे और भरी सभा में उनका चीरहरण हो रहा था, तब कृष्ण ने द्रोपदी की लाज बचाई थी।

मध्यकालीन  काल से जुड़े है तार-  जिसके उदाहरण सुनने को मिलते है-

रानी कर्णावती और रक्षाबंधन -

1-मध्यकालीन युग में राजपूत और मुस्लिमों के बीच संघर्ष चल रहा था, तब चित्तौड़ के राजा की विधवा रानी कर्णावती ने गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह से अपनी और अपनी प्रजा की सुरक्षा का कोई रास्ता न निकलता देख हुमायूं को राखी भेजी थी। तब हुमायूं ने उनकी रक्षा कर उन्हें बहन का दर्जा दिया था।

 2- कहा जाता है कि हमेशा विजयी रहने वाला अलेक्जेंडर भारतीय राजा पुरू की प्रखरता से काफी विचलित हुआ। इससे अलेक्जेंडर की पत्नी काफी तनाव में आ गईं थीं। उसने रक्षाबंधन के त्योहार के बारे में सुना था। सो उन्होंने भारतीय राजा पुरू को राखी भेजी। तब जाकर युद्ध की स्थिति समाप्त हुई थी। क्योंकि भारतीय राजा पुरू ने अलेक्जेंडर की पत्नी को बहन मान लिया था।

आज  के इस युग में भी यह त्यौहार बहुत धूम धाम से मनाया जाता है। बहने  भाई को राखी बांधने के लिये बहुत उत्साहित रह्ती है। नये-नये कपड़े पहन कर सज- सवर कर फल मिठाई लेकर पीहर जाना और भाईयों से अपनी मर्जी के गिफ्ट लेना जहा आपस के प्रेम को दर्शाता है । वही भाईयो की लम्बी आयु की प्रार्थना करना, भाई के द्वारा बहनो की रक्षा करने का वचन लेना कितना सुन्दर लगता है। राखी सामान्यतः बहनें भाई को ही बाँधती हैं। परन्तु ब्राह्मणों, गुरुओं और परिवार में छोटी लड़कियों द्वारा सम्मानित सम्बंधियों (जैसे पुत्री द्वारा पिता को) भी बाँधी जाती है। कभी-कभी सार्वजनिक रूप से किसी नेता या प्रतिष्ठित व्यक्ति को भी राखी बाँधी जाती है। अब तो प्रकृति संरक्षण हेतु वृक्षों को राखी बाँधने की परम्परा भी प्रारम्भ हो गयी है। हिन्दुस्तान में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पुरुष सदस्य परस्पर भाईचारे के लिये एक दूसरे को भगवा रंग की राखी बाँधते हैं।

हिन्दू धर्म के सभी धार्मिक अनुष्ठानों में रक्षासूत्र बाँधते समय कर्मकाण्डी पण्डित या आचार्य संस्कृत में एक श्लोक का उच्चारण करते हैं, जिसमें रक्षाबन्धन का सम्बन्ध राजा बलि से स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होता है। 

भविष्यपुराण के अनुसार इन्द्राणी द्वारा निर्मित रक्षासूत्र को देवगुरु बृहस्पति ने इन्द्र के हाथों बांधते हुए निम्नलिखित स्वस्तिवाचन किया (यह श्लोक रक्षाबन्धन का अभीष्ट मन्त्र है)-

येन बद्धो बलिराजा दानवेन्द्रो महाबल:। तेन त्वामपि बध्नामि रक्षे मा चल मा चल ॥

इस श्लोक का हिन्दी भावार्थ है- "जिस रक्षासूत्र से महान शक्तिशाली दानवेन्द्र राजा बलि को बाँधा गया था, उसी सूत्र से मैं तुझे बाँधता हूँ। हे रक्षे (राखी) ! तुम अडिग रहना (तू अपने संकल्प से कभी भी विचलित न हो।)"

मै अपने आपको सौभाग्यशाली मानती हूँ। मैने हिंदुस्तान की जमीन पे जन्म लिया है,जहाँ हर रिश्ता और त्योहार वैज्ञानिक तरीकों के साथ- साथ पृकृति से जुड़कर खूबसूरती से मनाया जाता है।

- झरना माथुर, देहरादून