राजा बेटा (लघु कथा) = डॉ रश्मि दुबे

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चिता को मुखाग्नि देने के नाम पर लोगों में खुसर-पुसर शुरू हो गई । कुछ विरोध के स्वर उठे तो कुछ ने अन्य कोई उपाय न होने पर लाचारी दिखाई । चचेरे भाई बंधु सभी थे किंतु सबका मानना यही था कि बेटों के होते हुए भला शर्मा जी को क्यों कोई मुखाग्नि देगा । उनकी आत्मा तो सदा भटकती रहेगी । ईश्वर के लोक में जाकर भी उन्हें शांति नसीब नहीं होगी । सब की तरह तरह की बातों के बीच गुड़िया ने अपने आंसू पोछे । पंडित जी से मंत्र उच्चारण करने के लिए कहा और स्वयं पिता को मुखाग्नि देकर सबका मुंह बंद कर दिया ।

    गांव में खासी धमक थी शर्मा जी की । आज के समय में 80 बीघा जमीन , सरकारी नौकरी , खूबसूरत पत्नी और 3 बच्चे ।  सीना चौड़ा होना ही था । दो बेटों के बाद अनचाही सही पर तीसरी संतान के रूप में गुड़िया मिली । दो बेटों के बाद बेटी भी नसीब से ही मिलती है । सभी की चहेती थी वह । बातों की पोटली तो इतनी थी कि किसी के मुंह से कुछ निकला नहीं कि जवाब तुरंत हाजिर । घर मोहल्ले और गांव में सब राजा बेटा बुलाते थे उसे । शर्मा जी भी सब से यही कहते थे " बेटों का क्या पढ़ लिख कर चले जाएंगे...बहुओं के हो जाएंगे ..बस मेरा राजा बेटा ही मुझे पार लगाएगा " । गुड़िया भी पूरे हक से खुशी-खुशी सारे फर्ज अदा करती ।

    समय भी पंख लगाकर अपनी रफ्तार से उड़ता रहा । आज दोनों बेटे अच्छी नौकरी में है । एक बेटा दिल्ली में सॉफ्टवेयर इंजीनियर है और दूसरा मुंबई में ।  दोनों अपने परिवार के साथ सुखी हैं । गुड़िया भी अब बीस की हो चली है । कभी शादी ब्याह की बात चले तो शर्मा जी हंस कर टाल देते । " .कहां जाएगा मेरा राजा बेटा ..मेरे साथ ही रहेगा जो जाने वाले थे.. वह तो चले गए "कहते हुए शर्मा जी ठहाका लगा कर जोर से हंस पड़ते ।

      कोरोना वायरस ने बड़े-बड़े शहरों में तो क्या अब गांव में भी पैर पसार दिए थे । पिछले बीस दिन से सब कुछ बंद था । शर्मा जी की ब्लड प्रेशर की समस्या भी बढ़ती चली जा रही थी । प्राइवेट डॉक्टर स्वयं डरे हुए थे । कोई मरीज को देखने को तैयार नहीं था । सरकारी अस्पताल जैसी कोई सुविधा गांव में नहीं थी । रोज की तरह आज भी गुड़िया गर्म पानी का गिलास लेकर पहुंची तो कई बार आवाज देने पर भी शर्मा जी नहीं उठे । उसने जोर जोर से चिल्लाकर सबको इकट्ठा किया तो पता चला शर्मा जी उसे और इस दुनिया को हमेशा के लिए छोड़ कर जा चुके हैं । बेटे भी मजबूर होकर रह गए । किसी भी हालत में उन्हें यात्रा करने की इजाजत नहीं मिली और आज आखिरी फर्ज़  भी राजा बेटा ने निभाकर शर्मा जी को मुक्ति प्रदान की ।    = डॉ रश्मि दुबे, गाजियाबाद