चाहत का भरम = प्रियदर्शिनी पुष्पा

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तेरी चाहत का फिर नया भरम लिख रही हूँ,

मिट चुकी यादों की पुरानी नज़्म लिख रही हूँ।

इश्क तो सिर्फ़ गमों की आँधी है,

ठहरा आँखों में वो खारा पानी हूँ,

छलक गया जो वो तिनकों के बहाने से,

पाँवों में चुभते शोलों के ज़ख़्म लिख रही हूँ।

मिट चुकी यादों की पुरानी नज़्म लिख रही हूँ।

एक वीराना सा शहर बसा है मन में मेरे ,

तीरगी में भी बाँध रखा है उम्मीदों के डोरे,

लौटना है नहीं मुमकिन ये सफ़र जीवन का,

ख़्वाहिशों में तमन्नाओं का वज़्म लिख रही हूँ।

मिट चुकी यादों की पुरानी नज़्म लिख रही हूँ।

हर बुलंदी पर इतराना, यही आदत है तेरी,

वो जो पाले थे हसद तुमने, वो तुम्हीं पे गिरी,

सर- बसर में है बसी हसरत तेरी,

मेरी आरज़ू का दफ़ह हर वज़्द लिख रही हूँ।

मिट चुकी यादों की पुरानी नज़्म लिख रही हूँ

इश्क दस्तूर में जीना तुमने सीखा ही नहीं,

रस्में उल़्फत को निभाना भी सीखा ही नहीं,

टूट बिखरी हूँ फ़जा़ओं में और बिखराओ नहीं,

क़तरे क़तरे में वो बिखरी हुई हर सज़्द लिख रही हूँ।

मिट चुकी यादों की पुरानी नज़्म लिख रही हूँ।

= प्रियदर्शिनी पुष्पा, झारखण्ड