प्रवीण प्रभाती = कर्नल प्रवीण त्रिपाठी

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नित्य सुबह रवि रश्मियाँ, तामस करती दूर।

उजियारे की शक्तियां, ऊर्जा दें भरपूर।।

तिमिर हृदय का नष्ट हो, उज्ज्वल मन हो जाय।

बने विवेकी तब मनुज, निश्छलता फैलाय।।

जगन्नाथ प्रभाती -

जगन्नाथ हे नाथ प्रभु, खड़े आपके द्वार।

दे दर्शन कृत-कृत करो, करवाओ भव पार।1

स्वामी तिहरी कृपा का, नहीं आदि अरु अंत।

स्वामी तव ब्रह्मांड के, महिमा अतुल अनंत।।2

मौसी के घर को चले, रथ में जग के नाथ।

बलदाऊ भी संग में, बहन सुभद्रा साथ।।3

नौ दिन तक आनंद से, मौसी के घर वास।

यह रथ यात्रा नाथ की, भरती मन उल्लास।।4

= कर्नल प्रवीण त्रिपाठी, नोएडा/उन्नाव