प्रवीण प्रभाती = कर्नल प्रवीण त्रिपाठी

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प्रवीण प्रभाती = कर्नल प्रवीण त्रिपाठी

आयी एक और भोर, लालिम धरा के छोर
शंकर को याद कर, आलस भगाइये।
खग हमें बुला रहे, प्रभात गान गा रहे।
कलरव अनूप है, मोहित हो जाइये।
कर्म पथ चल पड़े, कृषक निकल पड़े
फसलें भरपूर हों, शंभु से मनाइये।
चारे को बछड़े-गाय, सुबह से ही रँभाय
शिव के अभिषेक में, दूध भी चढ़ाइये।
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दिन शनिवार आज समेटिये सारे काज
सप्ताह के अंत में साँस तनिक लीजिये
पहले तो काम करें बाद में आराम करें
कैसे बीते दिन जरा विचार आप कीजिये
मनोरंजन कर के, स्वाँस तन में भर के
योग भक्ति आदि पे भी, कुछ तो ध्यान दीजिये
हनुमान शनिधाम राम नाम करे काम
आध्यात्मिक गंगा की भी बूँदें कुछ पीजिये।
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सूर्य देव दें प्रकाश अंधकार का विनाश
खिलते जब पलाश मन में उजास हो।
मन में आलोक भरें विकारों को दूर करें
विपदाएँ सर्व टरें नूतन विश्वास हो।
उमंगों के फूल खिलें दुर्गुणों की चूल हिलें
रवि से आशीष मिलें मन में उल्लास हो।
कर्म में जुटें सभी, आलस न करें कभी
मार्तण्ड हों खुश तभी पूर्ण सब आस हो।
= कर्नल प्रवीण त्रिपाठी, नोएडा/उन्नाव