कविता (हरेला पर्व) - जसवीर सिंह हलधर 

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हरेला हम सबका त्योहार ।

करें हम धरती का श्रृंगार ।।

प्रश्न मानव से करता यक्ष ।

लगाए कितने अब तक वृक्ष ।।

वृक्ष मानव जीवन के अंग ।

बिखेरे भांति भांति के रंग ।।

नील कुसुमों के वारिद बीच ।

ढकें पंकज के पल्लव कीच ।।

इन्हीं से सजता मधुर वसंत ।

यही कहता आकाश अनंत ।।

धरा सहती हम सबका भार ।

हरेला हम सबका त्योहार ।।1

बजाती मधुर साज मंजीर ।

पके जब बागों में अंजीर ।।

भूमि को जकड़े रहती मूल ।

रत्न गुम्फित से लगते फूल ।।

वृक्ष हैं ईश्वर का वरदान ।

इन्हीं से जिंदा है इंसान ।।

नहीं सँभले तो होगी देर ।

रोग फिर हमको लेंगे घेर ।।

विश्व में होगा हाहाकार ।

हरेला हम सबका त्योहार ।।2

छिपे वेदों में भी संदेश ।

यही ऋषियों का है आदेश ।।

धरा यदि होगी वृक्ष विहीन ।

आदमी होगा दु:खी मलीन ।।

काट मत पेड़ अरे नादान ।

सभ्यता का होगा नुकसान ।।

नहीं मानेगा यदि इंसान ।

धरा हो जाएगी शमशान ।।

मौत का होगा कारोबार ।।

हरेला हम सबका त्योहार ।।3

वृक्ष हैं औषधि के आयाम ।

वृक्ष से ही  मेवा बादाम ।।

वृक्ष देते फल सब्जी आम ।

गिनाऊँ कितने इनके नाम ।।

वृक्ष मानव जीवन के अंग ।

पले जग जीवन इनके संग ।।

वृक्ष से मिलती ताड़ी छंग ।

रहें चंदन के साथ भुजंग ।।

वृक्ष हैं प्रकृती के उपहार ।

हरेला हम सबका त्योहार ।।4

किये जो भूतकाल में पाप ।

बढ़ा वायू मंडल का ताप ।।

धरा है मौन खा रही चोट ।

चाँद रोता दिनकर ले ओट ।।

बढाओ मत अब इनकी पीर ।

नदी निगलेगी खुद का नीर ।।

अरे मानव मूरख पहचान ।

वृक्ष ही जगती के परिधान ।।

बचा ले “हलधर”यह संसार ।

हरेला हम सबका त्योहार ।।5

 - जसवीर सिंह हलधर, देहरादून