नव बर्ष फिर मुस्कुराने को है - किरण मिश्रा

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बेचैन हैं ,

फिर वापस आने को

रौनकें धूप की ।

कली कली ले रही अंगडाई

नव पल्लव की गोद,

दरख्तों पर कुनमुनाने लगे है

ताम्रपर्णी किसलय,

आम्र मंजरियाँ

सुवासित करने को

बेकल हो रहीं हैं आम्रवन,

कोयल की कुहू कुहू  से

गुंजायमान

हो उठेगी बस

कुछ ही दिवस में चहु दिशाएं...।

पीत पलाश

की चुनरी ओढ़ मुस्कुराने को आतुर

नवल बधू

घूँघट के पट से

हौले हौले,निहारने लगी है

आकाश की ऊचाँइयों में

प्रेम की गर्मी से रक्तिम सूर्य 

जिसके अंकवार में  बंध

गेंदा, गुलदाऊदी,कचनार,

के मखमली स्पर्श से,

उल्लसित हो

जाने कितने

पुष्प किसलयों से

खिल उठेगा धरा का अंग प्रत्यग।

रात फिर गुनगुनायेगी

चांद सितारों के लिहाफ

को हटा शबनमी पलकों से

अरूणिम सूरज के

चुंबन संग भोर का गीत..

वक्त फिर दूर क्षितिज तक

पंख फैलाने को है....

दिसम्बर जाने को है...

देखो...

नव बर्ष फिर मुस्कुराने को है ..!!

- डा किरण मिश्रा "स्वयंसिद्धा", नोएडा , उत्तर प्रदेश