नीर - (मनहरण घनाक्षरी छंद ) = स्वर्ण लता
Jun 2, 2021, 23:14 IST
| यमुना के तट पर,
चली गोपी हट कर,
नीर से ही घट भर,
चली कछु हँस के।।
हौले हौले पग धर,
तनिक मटक कर,
घूँघट की ओट कर,
चली नीर भर के।।
आयो नंद जी को लाल,
संग में ले ग्वाल बाल,
कांकरी को ले संभाल,
मार दीनों घट के।।
झर झर बह्यो नीर,
भीग्यो री गोपी को चीर,
हो गयी वो तो अधीर,
गारी दीनी डट के।।
= स्वर्णलता सोन, दिल्ली