राष्ट्रभाषा हिंदी - सुनीता मिश्रा

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कविताएं हज़ारों लिख डाली...

अंतर्मन की विरह वेदना पर...

पर न जाने आज क्यों ?

मन में है कुछ ख़ास लिखने को... 

अपनी राष्ट्रभाषा हिंदी पर ...

हिंदी है प्यारी मनमोहिनी बिंदी ....

सजती हमारे देश की ललाट पर ...

मुहावरों और  लोकोक्ति के श्रृंगार में,

ये भाती है भारत के हर लाल को ...

प्यारी वर्णो के सुन्दर फूल में गुंथे,

सजती है जब यह शब्दो में ,

मन को पुलकित है कर जाती ....

रूप सलोने लिए मेरी डायरी में ,

खुद ही सज जाती  है ....

कभी  विरह-वेदना  रूप  में ,

तो  कभी  प्यार  के  रंगो  में ,

जिंदगी  के कई  पहलुओं को ,

बड़े ही विचित्र ढंग से कह जाती  है ....

कुछ के  दो अर्थ बताकर ,

तो कुछ को सरल कर जाती  है ...

हिंदी है प्यारी भाषा ,

ये  हमे समझा जाती  है  .....

मेरी कविताओं में ये अपना  ही  रंग में ,

रंग  जाती  है  ....

मुझसे  करती  इतनी प्रीत कि....

वर्णो संग मेरे शब्दो में मुझे ही पिरो ,

खुद को लिख जाती  है ....

मुझ में रम कर  ,

मुझको हिन्दीमय कर जाती  है ....

.️ सुनीता मिश्रा, जमशेदपुर