नारी = शिप्रा सैनी 

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नारी = शिप्रा सैनी

ना.. री ,ना.. री,  
यह मत कर ,
यह कहते - कहते,
औरत नारी हो गई।
तिलांजलि देते हुए,
अपनी उत्कंठाओं को,
विराम लगाती,
बस चलती गई
उस राह पर ,
जो पुरुषों ने उसे बताई,
बुजुर्ग महिलाओं ने समझाई,
एक रूढ़िवादी परिपाटी चलाई।
अब जब नारी, 
वह करके दिखा रही है,
जिसके आगे 'ना' जुड़ा था ,
तो नतमस्तक होती है दुनिया ,
मानती है उसका लोहा।
पर चाहती है उससे वही,
जो नारी का प्रथम कर्तव्य है।
कमी उस कर्तव्य में ,
बर्दाश्त नहीं करती।
क्या उसकी गति को 
तेज करने पुरुष 
हाँथ बंटा सकता है ?
मंजूर कर सकता है,
थोड़ी जिम्मेदारियों की अनदेखी।
नहीं करता ,और जाँचता है ,
स्त्री को दोहरे मापदंड पर।
ना..री ,ना..री,
कर्तव्यों की अनदेखी कर,
इतनी ऊँची ना जा। 
उसे नीचे लाने की,
कोशिश बदस्तूर करता है । 
= शिप्रा सैनी (मौर्या), जमशेदपुर