मेरी ए- कलम = दीपक राही

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मुझे व्यांह कर मेरी ए-कलम,

कल हम नहीं रहेंगे,

फिर तुम्हारे शब्दों को,

आंसू बहाने के लिए,

हम नहीं कहेंगे,

मुझे व्यांह कर मेरी ए-कलम,

कल हम नहीं रहेंगे।

हताश होकर भी जिंदगी से

हम कुछ न कहेंगे,

अपने आंसुओं की स्याही बन,

तुम्हारी कलम से निकलने के लिए

नहीं कहेंगे,

मुझे व्यांह कर मेरी ए-कलम,

कल हम नहीं रहेंगे।

बंधनों से भी बाद कर,

तुम्हें बेजान नहीं कहेंगे,

कागज के उन पन्ने पर,

तुम्हारी नौक को,

चलने के लिए नहीं कहेंगे,

मुझे व्यांह कर मेरी ए-कलम,

कल हम नहीं रहेंगे।

खुद के अरमानों का,

गला घोटकर तुम्हें,

ख़ामोश रहने के लिए,

हम नहीं कहेंगे,

कुछ पल के लिए ही सही,

तुम्हें इतिहास,

लिखने के लिए नहीं कहेंगे,

मुझे व्यांह कर मेरी ए-कलम,

कल हम नहीं रहेंगे।

दीपक राही, आरएसपुरा, जम्मू-कश्मीर