नमी = किरण मिश्रा
Jul 3, 2021, 21:20 IST
| नमी मृदुल अहसासों की
नव जीवन सिंचित करती है।
नवकोंपल फिर से उगते हैं
मन बगिया फिर महकती है।
सावन सा मन हरियाता हैं ,
भादों जब मन पर छाता है
नवबंसत की आहट ले,
फिर फागुन गीत सुनाता है।
दंभ कुंठ जब मिट जाते
नवजीवन राह सजाता है।
इक पल, कोमल रिश्तों का
फिर आस के फूल खिलाता है।
गलती है तभी तो मानव हैं
स्व गलती पर जो पछताता है
राग द्वेष मिटाकर मानव
जब रिश्तों की शान बढ़ाता है।
पादप वही इक दिन फलकर
घना विटप बन जाता है
देता हैं छाँव कुटुम्बी को
सुख का सागर बन जाता है।
#किरणमिश्र स्वयंसिद्धा, नोएडा