याद आती है = प्रीति पारीक

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याद आती है मुझे,
उस बरगद के छांव की ,
जहां मेरी गुड़ियों का बसा ,
एक छोटा गांव था,
थी सखियों की सुनहरी टोली,
और पंछियों का राग था,
चौपालों की खिलती हंसी,
मिट्टी की सोंधी खुशबू थी ,
और झूलों के हिलोरो में छिपा ,
एक मल्हार था ,
मयूर की नृत्य कलाएं,
नदियों का कलकल संगीत था ,
मिट्टी के खेल खिलौने थे,
मर्यादाओं का दौर था ,
थी, बुजुर्गों की तालीम ,
और निश्चल प्रेम था ,
आज जब मुड करके देखा ,
सब कुछ तो अदृश्य था,
एक छीपी आस की लो,
अभी है जिंदा कहीं,
वापस लौटेगा वह जीवन ,
है यह एक विश्वास कही,
कोरोना तू आज है ,
कल कागजी " था" होगा , 
जीती है कई जंग,
तू भी ,
एक पुराना इतिहास होगा,
तू भी एक पुराना इतिहास होगा,
= प्रीति पारीक , जयपुर (राजस्थान)