मन कहता है - प्रीति आनंद

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मन कहता है...फिर आज एक कविता लिखूं I

हृदय के किसी भाव को शब्दों में पिरोकर देखूँ I

पर भाव हीन सा हृदय ,शब्द हो गए हैं शून्य..I

संवेदना की कोई भी लहर अब हो गयी न्यून I

कौन...से भाव हृदय पर अनुभूत हैं अब भारी ?

दुख-सुख,प्रेम-घृणा,क्रोध,संताप खो गई सारी I

हाँ...  सदा शांत ही रहना मन को है अब भाता I

भावनाओं की उथल-पुथल में मन नहीं भरमाता l

प्रेम के आवेग में बहना, क्रोध के आवेश में कहना l

घृणा या इर्ष्या में तप्त होना,किसी को खोकर रोना l

ये कहाँ अब..खाली सा है हृदय का हर एक कोना I

शांत चित्त और निश्चिंत होकर मन चाहता है सोना I

ये सोच,ये विचार क्या ये साध्वी बनने की है तैयारी?

हा हा..नहीं अभी तो इतनी उमर भी नहीं है हमारी I

- प्रीति आनंद , इंदौर, मध्य प्रदेश