मेरी कोमल (लघु कथा) - ममता राठौर
महेश्वरी जी कमरे का दरवाजा तेजी से बंद करते हुए आवाज दी , मीरा खाना तैयार है? जी माँ जी अभी करती हूँ जरा दीपू को दूध पिलाने लग -- ठीक है ठीख जल्दी करना मैं स्टेशन जा रही हूँ, कोमल को लेने बोलते हुए गाड़ी में बैठ कर स्टेशन की ओर चल दीं, दो घण्टे बाद बेटी कोमल ,दामाद अखिल और द्धेवती सोना के साथ वापस आयीं तो मिठाई, के डब्बे, चॉकलेट, नमकीन तमाम खिलौनों के साथ खुशी चेहरे से झलकती जो की कभी कभार ही मीरा ने देखी थी,स्वागत ,सत्कार शुरू हुआ मीरा ने खाना लगाया,सब को खिलाकर खुद खाया ,फिर किचन् की सफाई कर के जब कमरे में पहुँची तो राहुल दीपू के
साथ सो चुके थे, मीरा सोचती रही आज तो दीपू के कपड़ें भी नही बदल पायी , फिर दोनों को खिसका कर खुद चुपचाप लेट गयी, सुबह हड़बड़ा
कर उठी और किचन की ओर ही बढ़ी तो देखा माँ जी चाय, बनाकर कोमल के कमरे की ओर जा रहीं
थी, मीरा को बड़ा आश्चर्य हुआ,माँ जी तो --- मीरा झटपट नाश्ते की तैयारी करने लगीं,राहुल के ऑफिस जाने से पहले मीरा सारे काम निपटा लेती , क्यो की दीपू को भी उसे ही संभालना पड़ता, माँ जी , दीदी दामाद बाबू सोना घूमने जाते बैठ कर बातें करते कब दिन बीत गए पता ही नही चला अब दीदी जाने की तैयारी करने लगीं, मीरा सोचने लगी दामाद बाबू अपने घर नहीं गए जो इसी शहर में है, पर किसी से पुछने की हिम्मत नहीं कर पायीं, एक दिन पड़ोस की चाची जी दीदी से मिलने घर आयीं तो बातो ही बातों में दामाद बाबू से पूछ लिया बेटा तुम्हारे मम्मी ,पापा सब कुशल मंगल है, दामाद जी कुछ बोलते इससे पहले ही माँ जी ने कहा अखिल नहीं जाते है वहाँ जहाँ मेरी बेटी की इज्जत नहीं है पहली बार ही कितनी बंदिशे लगा दी खाना बनाओ, रोज घूमने न जाओ, जल्दी उठो, चाची जी चुप सुनती रहीं, तभी राहुल आफिस से आ गए , चाची जी ने चाय का कप रखते हुए कहा चलती हूं, बेटा खुश रहो फिर जल्दी से आना, माँ जी के चेहरे से गुस्सा झलक उठा किचन में आकर तैयारी देखने लगी फिर बेटी की तैयारी में लग गयीं ,दीदी के जाते ही घर फिर अपने पुराने रूप में चलने लगा माँ जी सुबह उठ कर बाग बागीचा देखती, फिर नहाना , पूजा पाठ, कभी पड़ोस में चली जाती या कभी कोई आ जाता मीरा अपने बच्चे के साथ घर गृहस्थी में व्यस्त , एक दोपहर एक कोरियर आया मीरा ने लेकर जल्दी में रख दिया, शाम को जब राहुल आफिस से लौट तो टेबल पे कोरियर को देख खोला और मुस्कराते हुए आवाज दी मीरा मीरा मीरा ने आकर कहा हाँ जी आज बहुत खुश हैं आप ! राहुल ने मुस्कराते हुए कहा तुम भी खुश हो जाओगी
अच्छा जी तो बात तो बताओ, बात यह है कि हमें नई जॉब मिल गयी अच्छी सैलरी और जयपुर शहर , वाह ! यह तो सच में बहुत खुशी की बात है। मीरा मन ही मन प्रभु का धन्यवाद करने लगी और किचन में जाकर कुछ मीठे की तैयारी करने लगी, राहुल खुशी खुशी माँ को बताने लगा पर माँ जी खुश नहीं हुई यह देख राहुल माँ से लिपट गया माँ आप खुश नहीं हैं अरे बेटा तू तो जनता ही है मैं यह घर छोड़ कर नही जा सकती, तो क्या हुआ माँ मैं आता जाता रहूंगा आप अभी स्वस्थ है माली काका और उनका परिवार भी है आप की देखभाल के लिए,
वो तो ठीख है बेटा, माँ आंगें बढ़ने के लिए कुछ तो करना पड़ता है, हो सकता हैं विदेश जाने का भी मौका मिल जाये,यह सुनते ही माँ जी बोल पड़ी अरे बेटा विदेश जाकर कौन लौटता है? यह सुन चुप बैठी मीरा ने कहा माँ जी विदेश जाकर लौट आते हैं
न आने वाले तो अपने ही शहर में होकर अपने घर नही आते ,यह सुनते ही महेश्वरी जी को अपने गालों पे तमाचे से लगे , भाव शून्य सी एकदम से क्रोध में भर कर मीरा की ओर लपकी तो राहुल ने हाथ पकड़ लिया माँ शांत हो जाओ, कथानक वही है, सिर्फ किरदार बदले हैं, ----- मीरा चलने की तैयारी करो। - ममता राठौर