सुनो   उर्मिले - क्रांति  पाण्डेय

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छोड़कर छोड़कर  छोड़कर  छोड़कर,

मैं जो जाऊं  तुम्हें  तुम  सुनो  उर्मिले।

कल आऊं आऊं आऊं जो मैं,

राह  तकना  मेरी  तुम   सुनो  उर्मिले।।

यह परम भाग्य से पुण्य हमको मिला,

प्रभु  की  सेवा  में  रत  मैं निरंतर रहूँ।

मां  स्वरूपा  परम  नेह  की  मूर्ति  के,

रज  चरण  में ही  अपना  जीवन गहूँ।

धूल हूं  प्रभु  के  चरणों  की मैं उर्मिले,

दूर   तुमसे  रहूं   तो     करना  गिले-

कल  आऊं आऊं आऊं जो मैं,

राह   तकना   मेरी  तुम  सुनो  उर्मिले।।

दास  का  धर्म  होता  कठिन है जरा,

कुछ नियम - बन्धनों में बंधा हूँ प्रिये।

नेह पूरित, अपरिमित  है  तुमसे सुनो,

धड़कनों  में  तुम्हीं  हो, तुम्हीं हो हिये।

प्राण हूं मैं  तुम्हारा  तो  तुम स्वांस हो,

और जन्मों से बंधन  के हैं  सिलसिले-

कल आऊं आऊं आऊं जो मैं,

राह   तकना  मेरी  तुम  सुनो  उर्मिले।।

मेरी   करना  विदाई  तो  हे   धर्मिणीं,

मुख कमल सा तुम्हारा खिला हीं रहे।

धर्म, धीरज, परम  धैर्य  की  मूर्ति के,

नयन  अश्रु   धारा     किंचित  बहे।

श्रेष्ठ  है  तप  तुम्हारा  ऋणी  मैं  सदा,

माँगता  हूँ  खुशी  सारी  तुमको  मिले-

कल आऊं आऊं आऊं जो मैं,

राह  तकना  मेरी  तुम  सुनो   उर्मिले।।

- क्रांति  पाण्डेय, रीवा, मध्य प्रदेश