जीवन के अनुभव - डॉ. भूपिंदर कौर
वह मेरी जानकार थी, मुझे बहुत अच्छी लगती थी । बहुत प्यारी सी थी और हरदम खुश रहने वाले जीवन से भरपूर लड़की थी। कहीं जॉब करती थी और स्कूटी पर जाती थी और जाते समय हमेशा मुझे विश करती हुई हेलो भाभी , कैसी हैं आप ?
बोलती हुई निकल जाती । मैं भी उसे प्यार से जवाब देती है । एक दिन , रात का समय 11 बजे होंगे, बेल बजी...... उसके पिता ने कहा कि श्वेता का एक्सीडेंट हो गया है ...... ।
सुनकर मैं डर गई पता नहीं कितनी चोट लगी होगी l पर ऐसे नहीं लगा था कि कुछ बहुत बड़ी बात हुई होगी ? एक्सीडेंट हुआ है , तो ठीक हो जाएगी और हालचाल पूछती , उससे पहले वह जल्दी-जल्दी हॉस्पिटल के लिए निकल गए l ज्यादा बात नहीं कर पाई l आकर लेट गई । मन ही मन भगवान से प्रार्थना कर रही थी, कि उसे कुछ ना हो , वह जल्द से ठीक हो जाए।
पर ...... थोड़ी देर बाद उनके घर से रोने की आवाजें आने लगी l मैं घबरा गई । पता चला कि उसका बहुत ही खतरनाक एक्सीडेंट हुआ है , वह बस के नीचे कुचली गई थी .........। मेरे पांव तले से जमीन खिसक गई ......। मैं कल्पना भी नहीं कर सकती थी कि ऐसा भी कुछ हो सकता है ? अभी तो उसके घर वाले उसकी शादी की तैयारियाँ कर रहे थे। और यह अचानक ...... । एकदम से क्या हो गया ? मैं बहुत परेशान , और दुखी थी। धीरे-धीरे दिन गुजरने लगे .. मैं उसको दिमाग से निकाल ही नहीं पा रही थी l रात-दिन उसके बारे में सोचती रहती। किसी ने मुझसे कहा कि जो व्यक्ति गुजर जाता है, उसके बारे में ज्यादा नहीं सोचना चाहिए; क्योंकि इनडायरेक्टली आप उसे अपनी तरफ अट्रैक्ट कर रहे होते हैं और अगर हम कमजोर पड़ जाए , तो हमारे साथ कुछ भी हो सकता है .....। पर चाह कर भी मैं उसे अपने दिमाग से नहीं निकाल पा रही थी । उठते-बैठते हर समय मुझे वही दिखाई देती।
सर्दियों के दिन थे । मैं उस रात भी उसके बारे में ही सोच रही थी , फिर एक दम से लगा कि जरा बच्चों को देख लूँ , ढंग से कंबल डला है कि नहीं ? ठीक से सोए हैं या नहीं ? और झटके से कंबल उठाकर अपने कमरे से बाहर निकली तो मेरी चीख निकल गयी .....ऽऽऽऽऽ यह क्या..... ??? वो मेरे कमरे के बाहर खड़ी थी .......।
पर ....... क्योंकि मैं बहुत स्पीड में थी , इसलिए बिना रुके दूसरे कमरे में चली गई । बच्चे सो रहे थे। उनको कंबल ओढ़ा दिया । पर अब अपने कमरे में वापिस जाने की हिम्मत मुझ में नहीं थी । मेरा शरीर कांप रहा था । मैं पसीने से तर-ब-तर हो गयी थी। घर के सभी लोग सो रहे थे । उन्हें जगाकर मैं परेशान नहीं करना चाहती थी ।
क्या करूं...... ? क्या करूं ......?
कुछ समझ में नहीं आ रहा था, लग रहा था जैसे वह अब भी बाहर खडी , मेरा इंतजार कर रही है ........।
और फिर .......
बहुत हिम्मत से, वाहेगुरु-वाहेगुरु करते हुए अपने कमरे की तरफ बढ़ी , मैंने देखा अब वह नहीं थी ....।
कई बार मुझे लगता था कि जैसे वह मुझसे कुछ कहना चाहती है l पर मुझे बहुत डर लगता था l कभी रात के समय अगर मैं पढ़ रही होती , तो मुझे ऐसा लगता कि वह मेरे सामने ही बैठी है । आज इस बात को 10-12 साल से भी ज्यादा हो गए हैं , पर मेरे लिए यह बात आज भी उतनी ही ताजा है, आज भी उतनी ही डरावनी , आज भी उतनी रहस्यमयी .....।
डॉ. भूपिंदर कौर, दिल्ली