कृष्ण तेरी बांसुरिया = पूनम शर्मा
कृष्ण तेरी जब बांसुरिया ,
प्रेम की धुन सुनाएं ।
गोपीन संग वृंदावन में ,
राधा भी रास रचाए ।
यमुना तीरे जब कृष्णा तू,
खेल कोई दिखलाए।
ग्वाल बाल सब आकर उस पल,
तुझ संग धूम मचाए।
देख मुख में ब्रह्मांड ,
यशोदा मइया थी चकराई ।
भुला स्मृति मइया कि तूने ,
अपनी महिमा दिखलाई।
मोहित करती धुन मुरली की ,
और कहा ना जाए।
देख के सबतो सुध-बुध खोए ,
तुम मन ही मन मुस्काए।
रूप सलोना कान्हा तेरा ,
जादू कोई कर जाए।
शीश मोर मुकुट है सोहे,
जो हर्षित मन को कर जाए।
पा कर तुझको ख्वाबों में भी,
मन मेरा तो इतराए ।
भोग लगाऊँ मिश्री माखन ,
जो आकर तू चख जाए ।
खबर मुझे तू भाव का भूखा,
नहीं चाहता कुछ भी।
रखता जो स्नेह हृदय में ,
तू उसका हो जाए ।
कट जाए हर विपदा उसकी,
जो तेरा साथ है पाए।
कृष्णा तेरी सुन बांसुरिया ,
स्नेहिल ये बात बताएं।
पाकर हर क्षण तुझको संग,
हर विपदा तब टर जाए।
भूल के वो जग सारा तब ,
बस तेरा ही हो जाए।।
=पूनम शर्मा स्नेहिल, गोरखपुर, उत्तर प्रदेश