पतंग - अनिरुद्ध कुमार

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बावरा उड़ता पतंग,

झूमता जैसे मलंग।

देख के मनवा विभोर,

क्या हवा में है उमंग।

लाल, पीला, नील रंग,

यह जगाये मन तरंग।

छोड़ सूता झट लपेट,

हो रहा है आज जंग।

दौड़ते सब संग संग,

यह धरा आकाश दंग।

वो कटा नीला पतंग,

हाय कैसा रंग ढंग।

           

खेल ये कितना जिवंत,

कौन राजा क्या महंत।

डोर उसके हाँथ जान,

पूजते नित साधुसंत।

आदमी हो सीख ढंग,

त्याग दे बेबात जंग।

प्यार तो जग में अनंत,

जिंदगी यह है पतंग।

- अनिरुद्ध कुमार सिंह

धनबाद, झारखंड।