कविता - शिप्रा सैनी
Jul 15, 2021, 00:01 IST
| मेरी बालकनी से सटा,
एक पेड़ है खड़ा।
उसमें है एक घोंसला,
जिसमें है अंडा पड़ा,
" कौवे का "।
जब भी बालकनी में आती हूँ,
सजग वह हो जाता है।
घोंसले की निगरानी को,
आसपास मंडराता है।
मेरी ही दी हुई रोटी को खाता है ।
पानी भी कांव-कांव कर मांगता है।
विश्वास था उसे तभी ,
चुना उसने पेड़ ये।
नहीं कुछ हानि करेंगे,
इस घर में रहने वाले ।
फिर भी विकल रहता है ।
"विश्वास में भी सजगता "
या
" सजगता के साथ विश्वास"
= शिप्रा सैनी (मौर्या), जमशेदपुर