कविता - (भूख) - जसवीर सिंह हलधर
Jul 22, 2021, 14:40 IST
| भूख सदा दुश्मन निर्भय की ।
आग जगाये यही हृदय की।
इसकी पड़ी जहां पर छाया ।
उसका रोम-रोम झुलसाया।
कल तक अपनी जो प्यारी थी ।
फूलों की दिखती क्यारी थी ।
चिता बनी है आज समय की ।।
भूख सदा दुश्मन निर्भय की ।।1
भूख नदी तट से टकराई ।
लहरों ने भी मांटी खाई ।
इसके कारण हुई लड़ाई ।
नाप सके क्या हम गहराई ।
कारक बनती रही विलय की ।।
भूख सदा दुश्मन निर्भय की ।।2
पथ पर खरपतवार उगे हैं।
जठर आग के सभी सगे हैं।
लोभ मोह ने सदा रुलाया ।
काम देव ने पथ भटकाया ।
रोज सताती भूख प्रणय की ।।
भूख सदा दुश्मन निर्भय की ।।3
भूख धरा का एक झरोखा ।
दिया मनुज को इसने धोखा ।
जब भी यह सीमा तोड़ेगी ।
इतिहासों का रुख मोड़ेगी ।
कारक होगी महा प्रलय की ।।
भूख सदा दुश्मन निर्भय की ।।4
- जसवीर सिंह हलधर, देहरादून