बस मुहब्बत हो - मुकेश तिवारी

 | 
pic

चिराग   है ,  तो  जलेंगें,

बस  अन्धेरें   होना चाहिये, 

फिर    हवाओं    में  रखों,

या  फिर  तूफानों  में रखों।

दिल  है ,  तो  इश्क  करेगें,

बस मुहब्बत  होना चाहिये,

फिर   धड़कनों    मे   रखो,

या  अश्क़   नैनो   मे  रखों।

सवाल   यह   भी   तो  है,

सरहदें  गुनाह   करतीं  है,

लफ्जों को  जुबां  पे   रखों,

या  खामोशी  होठों पे रखों।

बनों  खुद  पेड़  बरगद  सा,

दे   दो   शाखें   परिदों  को,

जिंदा  फिर  उन्हें  भी रखो,

रूह  भी अपनें सायें में रखो।

चिराग    है  ,  तो   जलेंगें,

बस  अन्धेरें   होना  चाहिये, 

फिर   हवाओं   में   रखों,

या   फिर   तूफानों  में  रखों।

- मुकेश  तिवारी- वशिष्ठ, इन्दौर, मध्य प्रदेश