स्वछंद कविताओं का बढ़ता चलन - झरना माथुर

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जब से कोरोना आया है तब से जीवन में हमारे बहुत बदलाव आया है। घर में रहने के कारण हम लोगों के पास समय है या यूँ कहे कि अपने से खुद बातें करने का समय आ गया। हम लोगो ने अपने को फिर से जानने की कोशिश की और पाया कि अभी हमारे अन्दर कुछ ऐसा है जिसे विकसित किया जा सकता है या एक मौका है फिर से अपने गुण को निखारने का। और इसी दौर में लेखन या कविताओं का दौर आया। हम लोगों ने पाया कि हर घर में कोई ना कोई व्यक्ति है जो लिख सकता है। हुआ भी यही सबने लिखना शुरू कर दिया। फिर क्या था ऑनलाइन मंच खुले और कविता पाठ प्रारम्भ हुआ। सब बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेने लगे।

अगर में ये कहूँ कि हिंदी साहित्य में एक क्रांति आ गयी और कोरोना के समय में जो कवि या कवयित्रिओं ने जन्म लिया, उन्हें "कोरोना कालीन" कवि या कवयित्री कहा जाये तो अतिश्योक्ति नही होगी। मेरा तो मानना है कि आगे हिंदी साहित्य मे ये समय "कोरोना कवि युग " कहलायेगा।

     अब बात आती है लेखन की। बहुत से ज्ञानी जो सब विधाओं में कुशल है उन्होंने अपनी लेखनी उन पर चलायी। लेकिन मेरे जैसे अज्ञानियों  ने सिर्फ अपनी भावनाओं को लिखा। अगर पति से लड़ाई हो गयी तो लिख डाला अपने भावों को,अगर किसी ने कुछ कह दिया तो उसे लिख दिया। यहाँ तक सास- ननद से हुई तकरार भी भावनाओं में  वह गयी और अनजाने में उसने कविता का रूप ले लिया।

      ज्ञानी, विद्वानों ने जब उसे पढ़ा तब प्यार से समझाने का प्रयास किया कि इसे छंद में लिखों और फिर सिलसिला गुरू-शिष्य के रिश्तों का हुआ। बहुत सुधार भी आया, बहुत सी चीजें समझ भी आई। लेकिन ऐसा लगा कि नियमों में बांधने के चक्कर में भावनाएँ खुल के नही आ पा रही। कवितायें घुट सी जा रही है या नियमों मे बांधने के चक्कर में भावनाएँ बिखर जा रही है।

     फिर क्या था छन्द मुक्त कविताओं का चलन आ गया। बहुत से लोगों ने छन्द मुक्त कविताओं को लिखना शुरू कर दिया। मुझें लगता है कि आजकल के आधुनिक समय में जहाँ बच्चे इंग्लिश मीडियम में पढ़ते है, मल्टीनेशनल कंपनी में काम करते है, समय का बहुत ही अभाव है। सबसे खास बात  अपनी मातृ भाषा का ही ज्ञान नही है क्योंकि उसका स्थान अब इंग्लिश ने ले लिया है। सिर्फ इंग्लिश में लिखना और बोलना आदत में आ गया है। हम अपनी हिंदी भाषा से दूर होते जा रहे है ।जब भाषा ही नही पढ़ते तो उसका साहित्य ही क्या समझेंगे। आजकल व्यक्ति बातों को कुछ सैकंड़ मे समझना चाह्ता है। वो जटिलताओ से दूर भागता है। उसे सिर्फ जल्दी में समझना होता है और ऐसे समय में छन्द मुक्त कविताये उसे ज्यादा पसंद आती है।

   मेरा भी मानना ये है छंद मुक्त कविताओं मे अगर भावनाओं को कहने और लोंगो में संदेश भेजने की शक्ति है तो गलत नही है। हा ये जरूर है कविताये तुकान्त में हो और जो कविता लिखने के सामान्य नियम हो उसका पालन करने वाली हो। 

- झरना माथुर, देहरादून (उत्तराखंड)