तुझको कैसे चाहूं - नीलकान्त सिंह

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सोचता हूं दूर कहीं चला जाऊं,
दूर इतना, कभी लौट कर न आऊं,
कहता है मन, तुझको कैसे चाहूं?

उम्मीदें सब अपनी टूटने लगी,
बिन उम्मीदें जीकर ही क्या पाऊं ,
दिल कहता है, तुझको कैसे चाहूं ?

जिन्दगी का भी न कोई बहाना,
ढ़लती जिन्दगी को कैसे जगाऊं,
बिन जिन्दगी, तुझको कैसे चाहूं ?

थकते-थकते जिन्दगी भी थक गयी,
बिन तेरे मैं कभी भी जग न पाऊं,
बिना जगे मैं, तुझको कैसे चाहूं?

मंजिल तुझ तक आकर रुक जाती है,
तुझे छोड़ कर भागते कहां जाऊं,
कुछ तो बतला, तुझको कैसे चाहूं?
@नीलकान्त सिंह नील, मझोल, बेगूसराय