हिंदी ग़ज़ल -- #राजू_उपाध्याय

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बरसातों में भींगे भींगे, उस आँचल जैसी तुम।

दिल के दरवाजे पे बजती, सांकल जैसी तुम।

पवन झकोरों में बहती,,सौंधी सी खुशबू हो,

मेघ मल्हार संग गूंजी हो,,पायल जैसी तुम।

धरती पर ठहरी आसमान की टुकड़ी सी,

मन के आँगन में बरसी हो,, बादल जैसी तुम।

चाँद सितारों के संग सोनजुही सी महकी हो,

फिर क्यूं ऐसी दृष्टि निहारो,घायल जैसी तुम।

सावन की शहजादी सी हो तुम बरखा रानी,

नये नवेले नैनों में सजते,,काजल जैसी तुम।

मौसम के मुखड़े पे बिखरी रिमझिम बूंदों सी,

प्रेम छुवन से मूर्छित मन सी पागल जैसी तुम।

#राजू_उपाध्याय ,एटा, उत्तर प्रदेश