हिंदी ग़ज़ल - जसवीर सिंह हलधर

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जिंदगी उलझी पहेली बेवज़ह करती फसाद ।

मौत बस सच्ची सहेली ना- मुरादों की मुराद ।

पेट में दाना नहीं है आंत में पानी नही ,

हुक्म है सरकार का ये भोज में खाओ सलाद ।

काफिरों से बैर जिसका कौन सा भगवान वो ,

एक दिन दुनियाँ जला देगा उसी का यह जिहाद ।

यह जमीं जन्नत सरीखी और मत गंदा करो ,

युद्ध के अभ्यास से होने लगा सागर विषाद ।

जाति रूपी ज़ख्म अब नासूर बनते जा रहे ,

देश की आबोहवा में घुल रही इनकी मवाद ।

धर्म के कुछ कारखाने गढ़ रहे शैतान अब ,

राजनैतिक कुछ मशीनें कर रहीं इनको खराद ।

प्रश्न गंगा कर रही है मौन भगीरथ खड़े ,

स्वच्छता के नाम पर क्यों ऋषि पुत्रों में विवाद ।

पीर पैगंबर यहां सब दे गए  संदेश यह ,

अंश सब भगवान के इरफान "हलधर"या निषाद ।

- जसवीर सिंह हलधर , देहरादून