हिंदी ग़ज़ल - जसवीर सिंह हलधर
Nov 21, 2021, 23:09 IST
| जिंदगी उलझी पहेली बेवज़ह करती फसाद ।
मौत बस सच्ची सहेली ना- मुरादों की मुराद ।
पेट में दाना नहीं है आंत में पानी नही ,
हुक्म है सरकार का ये भोज में खाओ सलाद ।
काफिरों से बैर जिसका कौन सा भगवान वो ,
एक दिन दुनियाँ जला देगा उसी का यह जिहाद ।
यह जमीं जन्नत सरीखी और मत गंदा करो ,
युद्ध के अभ्यास से होने लगा सागर विषाद ।
जाति रूपी ज़ख्म अब नासूर बनते जा रहे ,
देश की आबोहवा में घुल रही इनकी मवाद ।
धर्म के कुछ कारखाने गढ़ रहे शैतान अब ,
राजनैतिक कुछ मशीनें कर रहीं इनको खराद ।
प्रश्न गंगा कर रही है मौन भगीरथ खड़े ,
स्वच्छता के नाम पर क्यों ऋषि पुत्रों में विवाद ।
पीर पैगंबर यहां सब दे गए संदेश यह ,
अंश सब भगवान के इरफान "हलधर"या निषाद ।
- जसवीर सिंह हलधर , देहरादून