हिंदी ग़ज़ल - जसवीर सिंह हलधर

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कभी संतूर जैसी  धुन निकलती क्या नगाड़ों में ।

नहीं बादाम सी ताकत कभी मिलती सिंघाड़ों में ।

बिना हथियार वीरों ने दिखाये शौर्य के करतब ,

चबा डाले चवालिस चीन के सैनिक जवाड़ों में ।

नदी आवाज खो बैठी सुरीली जल तरंगों की ,

भयानक नाद था उस वक्त शेरों की दहाडों में ।

छुपे थे युद्ध के एलान चीनी चालबाजी में ,

हिमाकत कर गया दुश्मन छुपा बैठा पहाड़ों में ।

खिलाड़ी बंद कमरों में कभी पैदा नहीं होते ,

कबड्डी और कुश्ती फूलते फलते अखाड़ों में ।

खदानों की खुदाई में सदा हीरे निकलते हैं ,

कभी मिलते नहीं हीरे पड़े मलवे कवाड़ों में ।

खुली खिड़की से अक्सर राज सड़कों पर टहलते हैं ,

मगर आरोप के बादल सदा दिखते किवाड़ों में ।

पड़ी चट्टान पर "हलधर" पनपते पेड़ पौधे जो ,

बताओ कौन बोता बीज पर्वत की दराड़ों में ।

- जसवीर सिंह हलधर, देहरादून