हिंदी ग़ज़ल = जसवीर सिंह हलधर 

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मन बहलाती बातें हैं ।

दिल दहलाती रातें हैं ।।

समता की बातें करते ।

आरक्षित क्यों जातें हैं ।।

अच्छे दिन वो कहाँ गये ।

जुमलों की सौगातें है ।।

सड़कों पर मारामारी ।

गोली, घूंसा, लातें हैं ।।

दिल्ली दल्लों ने घेरी ।

बल्ली बिना कनातें हैं ।।

केसर घाटी घायल है।

पत्थर की बरसातें हैं ।।

जनता तो भोली भाली ।

बस घातों पर घातें हैं ।।

कोरोना की दहशत में।

बिन दूल्हा बारातें हैं ।।

भारत में हर मुद्दे पर ।

चौसर बिछी विसातें हैं ।।

बोटों की खातिर "हलधर"।

पाली हुईं जमातें हैं ।।

 = जसवीर सिंह हलधर, देहरादून