हिंदी ग़ज़ल = जसवीर सिंह हलधर
Jun 30, 2021, 23:30 IST
| मन बहलाती बातें हैं ।
दिल दहलाती रातें हैं ।।
समता की बातें करते ।
आरक्षित क्यों जातें हैं ।।
अच्छे दिन वो कहाँ गये ।
जुमलों की सौगातें है ।।
सड़कों पर मारामारी ।
गोली, घूंसा, लातें हैं ।।
दिल्ली दल्लों ने घेरी ।
बल्ली बिना कनातें हैं ।।
केसर घाटी घायल है।
पत्थर की बरसातें हैं ।।
जनता तो भोली भाली ।
बस घातों पर घातें हैं ।।
कोरोना की दहशत में।
बिन दूल्हा बारातें हैं ।।
भारत में हर मुद्दे पर ।
चौसर बिछी विसातें हैं ।।
बोटों की खातिर "हलधर"।
पाली हुईं जमातें हैं ।।
= जसवीर सिंह हलधर, देहरादून