हिंदी ग़ज़ल = जसवीर सिंह हलधर 

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त्रासदी पिछली सदी की याद दुहराने लगी ।

रोग की दूजी लहर अब मौत बरसाने लगी ।

काल कोरोना बना है आदमी लाचार है ,

ऑक्सीजन की कमी भी कहर यूँ ढाने लगी ।

कौन है इसका रचियता दोष किसके सर मढ़ें ,

चीन की कारीगरी संसार में छाने लगी ।

हादसों में मौत की कीमत नहीं इस देश में ,

मौत भी शमशान में यह देख पछताने लगी।

रैलियों को दोष दें या कुम्भ का करतब कहें ,

या चुनावी बाड़ ही खुद खेत को खाने लगी।

प्राण रक्षा की दवाई क्यों नहीं बाजार में ,

आपदा में लाभ वाली सोच सुख पाने लगी।

साख से पत्तों सरीखी क्यों बिखरती जा रही ,

योजना सरकार की बेवस नज़र आने लगी।

आदमी की जिद कहें या राजनैतिक दोष ये ,

ढेर लाशों के लगे हैं चील मँडराने लगी।

क्या कहें किससे कहें कितना डरा है आदमी ,

लेखनी "हलधर" दुखी हो मर्सिया गाने लगी ।

= जसवीर सिंह हलधर, देहरादून