हिंदी ग़ज़ल = जसवीर सिंह हलधर
Jun 1, 2021, 23:19 IST
| त्रासदी पिछली सदी की याद दुहराने लगी ।
रोग की दूजी लहर अब मौत बरसाने लगी ।
काल कोरोना बना है आदमी लाचार है ,
ऑक्सीजन की कमी भी कहर यूँ ढाने लगी ।
कौन है इसका रचियता दोष किसके सर मढ़ें ,
चीन की कारीगरी संसार में छाने लगी ।
हादसों में मौत की कीमत नहीं इस देश में ,
मौत भी शमशान में यह देख पछताने लगी।
रैलियों को दोष दें या कुम्भ का करतब कहें ,
या चुनावी बाड़ ही खुद खेत को खाने लगी।
प्राण रक्षा की दवाई क्यों नहीं बाजार में ,
आपदा में लाभ वाली सोच सुख पाने लगी।
साख से पत्तों सरीखी क्यों बिखरती जा रही ,
योजना सरकार की बेवस नज़र आने लगी।
आदमी की जिद कहें या राजनैतिक दोष ये ,
ढेर लाशों के लगे हैं चील मँडराने लगी।
क्या कहें किससे कहें कितना डरा है आदमी ,
लेखनी "हलधर" दुखी हो मर्सिया गाने लगी ।
= जसवीर सिंह हलधर, देहरादून